LONDON अंग्रेजी “टी” जो अब विलायत में “चाय” बनकर खूब टहल रही
-चन्द्रकान्त पाराशर
LONDON 15-12-24: विलायत/लंदन की सड़कों पर भारतीय चाय की खुशबू खूब महक रही है. विलायत के शहरों में छोटी-बड़ी मार्केट में भारतीय परिवेश अनुसार बनी चाय यानी टी खूब प्रसिद्धि पा रही है. लंदन समेत कई देशों में “चाय” शब्द का मतलब ही भारतीय शैली की चाय हो गया है.
भारतीयों ने चाय को एक नया स्वाद है, जिसने दुनियाभर में अपनी अलग पहचान बना ली है. आइए जानते हैं लंदन में भारतीय चाय के इस जादू के पीछे की कहानी.
LONDON अक्सर कहा जाता है कि चाय और राय… हर जगह सही नहीं मिलती. सच्च भी है. लेकिन, सुदूर विलायत के शहरों की छोटी-बड़ी मार्केट में भारतीय परिवेश अनुसार बनी चाय अर्थात टी न केवल खूब बिक रही, बल्कि प्रसिद्धि भी पा रही है.
LONDON पहले यहां हाई वाइकॉम्ब, लंदन के रहवासियों से सुना था, “चायवाला”, चायपानी, कड़क चाय जैसे भारतीय हिन्दी शीर्षकों से रेस्तरां के नाम विलायत यानी लंदन में प्रायः मिल जाएंगे. वह भी अंग्रेजों के अंग्रेजी शब्द से निकल हिंदी भाषा की महानदी में तैरकर रोमन रूप में स्वाद की दुनियां की वैतरणी को पार कर जाना चाहती हो. मुझे तो एकबारगी ऐसा ही लगा जब ख़ुद आकर उपरोक्त वर्णित जगहों यानी रेस्टोरेंट्स में चाय का स्वाद चखा.
LONDON वैसे यह सिर्फ एक पेय ही नहीं है, बल्कि अपने आप में एक अनुभव है. आजकल तो भारत की मसाला चाय दुनिया भर में मशहूर हो चुकी है. लंदन समेत कई देशों में “चाय” शब्द का मतलब ही भारतीय शैली की चाय हो गया है.चाय को दिया एक नया स्वाद भारत देश की जलवायु, देश-काल परिस्थितियों के अनुसार निसंदेह भारतीयों ने चाय बनाने का अपना अनूठा तरीका निकाला. उन्होंने चाय की पत्तियों को सीधे पानी या दूध में उबालना पसंद किया, ना कि उबले हुए पानी में डालना. ब्रिटिशों से उन्होंने दूध और चीनी मिलाने का तरीका जरूर सीखा, लेकिन भारतीयों ने इसमें अपना बदलाव किया. भारतीय चाय विक्रेताओं ने चाय में स्थानीय मसाले डालकर इसका स्वाद और बढ़ा दिया.
उन्होंने चाय को अदरक, इलायची, दालचीनी, लौंग और तेज पत्ते जैसी चीजों के साथ उबाला. शायद यही कारण है कि हमारी मसाला चाय दुनिया भर में मशहूर है. द चायवाला छपे कागज-प्लेट पर ही समोसा-चाट आदि सामग्री को चाय के साथ परोसकर और भी आकर्षक बनाते हैं.
चाय का वानस्पतिक या वैज्ञानिक नाम केमेलिया साइनेन्सिस (Camellia sinensis) होता है. विदित है पहले के जमाने में चाय पत्ती पर चाइना का ही आधिपत्य था. शुरू में अंग्रेजों ने अपने देश की “चाय-मांग” को ही पूरा करने के लिए भारत में इसका उत्पादन प्रारंभ किया था. भारत में जब चाय के बागान लग गए. तब भारत से अन्य देशों को चाय की पत्ती का निर्यात शुरू हुआ.
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