PRAYAGRAJ सिर्फ संतों से दक्षिणा लेते हैं जंगम साधु
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भगवान शिव की जांघ से जन्म हुआ, जंगम साधुओं की पूरी कहानी
महाकुंभ नगर में आए अखाड़ों में साधुओं का एक जत्था निरंतर भजन-कीर्तन करते हुए पहुंचता है।
हाथों में ढफली, मंजीरा, ढोलक…एकदम अलग अंदाज। इनके भजन-कीर्तन मनोरंजन के लिए नहीं होते
PRAYAGRAJ कल्पवास में बैठे साधुओं से भिक्षा मांगने के लिए होते हैं। इन साधुओं की पहचान है- जोगी जंगम साधु।
सिर पर मोरपंख, शिव का नाम, बिंदी और कानों में पार्वती के कुंडल। इसी श्रृंगार के साथ ये साधु-संतों के पास पहुंचते हैं।
ये बस सुर साधक हैं, जो अपने ईष्ट और उसके उपासक अखाड़े की महिमा का गान करते हैं। ऐसे में इन्हें अखाड़ों के सिंगर भी कहा जाता है।
विजेंद्र जंगम बताते हैं- धार्मिक मान्यता है कि पार्वती से शादी के बाद जब शिव ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा को दान देना चाहा,
तो उन्होंने दान लेने से मना कर दिया। इससे नाराज होकर भगवान शिव ने क्रोध में अपनी जांघ पीट दी। इससे साधुओं का एक संप्रदाय पैदा हुआ। इसका नाम पड़ा- जंगम साधु अर्थात जांघ से जन्मा साधु।
यही जंगम साधु आज भी संन्यासी अखाड़ों के पास जाकर शिव के कथा-गीत सुनाते हैं। उनसे मिले दान से अपनी जीविका चलाते हैं। वैष्णव अखाड़ों में इनका प्रवेश नहीं होता। ये ‘भेंट’ को हाथ से नहीं लेते, अपनी घंटी को उलट कर उसमें दक्षिणा लेते हैं।